उसके बाद हाँगर ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में जाना, परमेश्वर के वचनों को पढ़ना, सत्य पर संगति करना और अपने भाई-बहनों के साथ परमेश्वर की प्रशंसा में भजन गाना शुरू कर दिया। उसने देखा कि वे सभी दयालु थे और दूसरों के साथ ईमानदारी से पेश आते थे। वे अपने द्वारा प्रदर्शित भ्रष्टाचार के बारे में सीधे और ईमानदारी से बात कर सकते थे, फिर उस भ्रष्टाचार का परमेश्वर के वचनों के अनुसार विश्लेषण कर, परमेश्वर के पसंद के ईमानदार लोगों की तरह बनने का प्रयास कर सकते थे। कोई भी किसी और का उपहास नहीं उड़ाता था, बल्कि वे एक-दूसरे की मदद करते और एक-दूसरे को सहारा देते थे। हर चेहरा खुश मुस्कुराहट के साथ दमकता था। हाँगर को ईमानदार, हर्षित वातावरण प्रभावी लगा और उसने उस बड़े परिवार के भीतर ऐसा आराम और आज़ादी पाई जो उसने पहले कभी नहीं पाई थी। उसने उस गर्माहट को, जिसे उसने लंबे समय से महसूस नहीं किया था, और घर वापस आने के एहसास को, फिर से खोज लिया। उसकी परेशानी दिन-प्रतिदिन कम होती चली गयी, और धीरे-धीरे उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी। परमेश्वर के वचनों के भीतर, उसने उन चीज़ों के उत्तर पाए, जिन्होंने उसे लंबे समय से उलझन में डाल रखा था और उसने अपनी पीड़ा की जड़ को जाना। उसने परमेश्वर के वचनों में निम्नलिखित देखा: "सच्चाई तो यह है, मनुष्य परमेश्वर की सारी सृष्टि के क्रम में सबसे छोटा है। यद्यपि वह सब वस्तुओं का स्वामी है, फिर भी उनमें केवल मनुष्य ही है जो शैतान की धोखेबाजी का शिकार है, एकमात्र प्राणी जो उसके दुराचरण के अनगिनत तरीकों का शिकार हो जाता है। मनुष्य की स्वयं पर कभी भी प्रभुता नहीं रही। अधिकांश लोग शैतान के घृणित स्थान में रहते हैं, और उपहास को सहते हैं; इस संसार के हर अन्याय, हर कष्ट को सहते हुए, जब तक वे आधे मर नहीं जाते तब तक वह उन्हें कष्ट देता रहता है। उनके साथ खेलने के बाद, शैतान उनके गंतव्य को ख़त्म कर देता है"। "एक के बाद एक, ये सभी प्रवृत्तियाँ दुष्ट प्रभाव को लेकर चलती हैं जो निरन्तर मनुष्य को पतित करते रहते हैं, जिसके कारण वे लगातार विवेक, मानवता और कारण को गँवा देते हैं, और जो उनकी नैतिकता एवं उनके चरित्र की गुणवत्ता को और भी अधिक नीचे ले जाते हैं, उस हद तक कि हम यहाँ तक कह सकते हैं कि अब अधिकांश लोगों के पास कोई ईमानदारी नहीं है, कोई मानवता नहीं है, न ही उनके पास कोई विवेक है, और कोई तर्क तो बिलकुल भी नहीं है"। "तुम सभी लोग 'विश्वासघात' शब्द से परिचित हो क्योंकि अधिकांश लोगों ने पहले दूसरों को धोखा देने के लिए कुछ किया होता है, जैसे कि किसी पति का अपनी पत्नी के साथ विश्वासघात करना, किसी पत्नी का अपने पति के साथ विश्वासघात करना, किसी बेटे का अपने पिता के साथ विश्वासघात करना, किसी बेटी का अपनी माँ के साथ विश्वासघात करना, किसी गुलाम का अपने मालिक के साथ विश्वासघात करना, दोस्तों का एक दूसरे के साथ विश्वासघात करना, रिश्तेदारों का एक दूसरे के साथ विश्वासघात करना, विक्रेताओं का क्रेताओं के साथ विश्वासघात करना, इत्यादि। इन सभी उदाहरणों में विश्वासघात का सार निहित है।" "मनुष्य की प्रकृति उसका जीवन है, यह एक सिद्धांत है जिस पर वह जीवित रहने के लिए भरोसा करता है और वह इसे बदलने में असमर्थ है। ठीक विश्वासघात की प्रकृति की तरह-यदि तुम किसी रिश्तेदार या मित्र को धोखा देने के लिए कुछ कर सकते हो, तो यह साबित करता है कि यह तुम्हारे जीवन और तुम्हारी प्रकृति का हिस्सा है जिसके साथ तुम पैदा हुए थे। यह कुछ ऐसा है जिससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता है।"
परमेश्वर के वचनों के माध्यम से, हाँगर समझ गयी कि सभी मानवीय दुःख शैतान के भ्रष्टाचार के कारण उत्पन्न होते हैं, कि सभी लोग एक बड़े कुंड के भीतर रहते हैं, जो बुराई से भरपूर है। हम पर, "अपने मकान को मजबूत बनाए रखो और अपनी मस्ती जारी रखो"; "जिंदगी छोटी है। जबतक उठा सकते हो इसका आनंद उठाओ"; "आनंद के दिन को हाथ से जाने न दो, क्योंकि ज़िन्दगी छोटी है"; "दस में से नौ आदमी मस्ती का आनन्द लेते हैं, उनमें से दसवां सिर्फ एक मूर्खानंद होता है", इन जैसे शैतान के बुरे संदेशों की बमबारी होती है। इसका अर्थ ये है कि एक पुरुष जो दूसरी महिला से सम्बन्ध रखता है, जो एक प्रेमिका रखे हुए है, वह सहन करने योग्य है और हैसियत का एक सूचक है। इसके अलावा, प्रलोभनों से भरी मनोरंजन की जगहें, प्रमुख सड़कों से लेकर छोटी गलियों तक, हर तरफ हैं, जो लोगों के लिए दुष्टतापूर्ण दैहिक सुखों में लिप्त होना बहुत ही सुविधाजनक बना देता है। कई लोग बेशर्मी से एक रात के लिए ऐय्याशी करते और चक्कर चलाते हैं। वे लोग इतने दुष्ट और भ्रष्ट हैं, इतने ऐय्याश हैं कि उनमें किसी भी तरह की मानवीय समानता का अभाव है। जब लोग सत्य नहीं समझते हैं, उनके पास अच्छे और बुरे, सौंदर्य और कुरूपता, या सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के बीच अंतर करने का विवेक नहीं होता है। चीजों के बारे में उनके दृष्टिकोण विकृत होते हैं, वे बुरी चीजों को न्यायपूर्ण और सम्मानजनक मानते हैं। वे अपने वादों से इनकार करदेते हैं, अपने विवाह के साथ धोखा करते हैं केवल इसलिए कि वे अपनी दैहिक इच्छाओं को तृप्त कर सकें, और वे उस मानवीयता, तार्किकता, नैतिकता और गरिमा को खो देते हैं जो मनुष्य के पास होनी चाहिए। वे शैतान के प्रभुत्व के अंतर्गत रहते हैं, पूरी तरह से देह में खोये रहते हैं, संतुष्टि का पीछा करते हैं, अपनी खुद की अनुचित इच्छाओं को पूरा करते हैं। हाँगर ने इस दुष्ट समाज के बारे में थोड़ा सोचा। पतियों को धोखा देने वाली पत्नियाँ और पत्नियों को धोखा देने वाले पति आम नजारे हैं हैं; दुष्ट प्रवृत्तियों के विनाश के तहत, जिन लोगों में सत्य का अभाव है, वे इन चीज़ों का कोई विरोध नहीं कर पाते है। वे न चाहते हुए भी इस बुरी सोच के प्रभाव के अधीन हैं, वे जिम्मेदारियों, नैतिकता, न्याय, और अपनी अंतरात्मा की अवहेलना करते हैं, ताकि एक क्षणभंगुर दैहिक इच्छा को पूरा कर सकें। वे अपने जीवनसाथी को एक ओर कर देते हैं, जिससे उनके परिवार को अत्यधिक भावनात्मक नुकसान होता है, ज़िन्दगी भर का दुःख भी संभव है। उसने देखा कि उसका पति भी इन बुरी शैतानी प्रवृत्तियों का शिकार था। हाँगर ने अतीत के बारे में सोचा कि कैसे उसका पति, उसके प्रति इतनी परवाह करने वाला और प्रेमी हुआ करता था, कैसे उन्होंने कभी भी अपने लिए भौतिक संपत्ति नहीं चाही-बस आपसी प्यार, स्नेह, खुशी और सद्भाव यही चाहा। लेकिन एक बार जब उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो गयी, तो उसने अक्सर ग्राहकों का मनोरंजन करना शुरू कर दिया और एक मनोरंजन स्थल से दूसरे स्थल पर जाने लगा। वह उन दुष्ट प्रवृत्तियों के लालच का विरोध नहीं कर पाया और निरंकुश ज़िन्दगी जीने लगा। उसका एक चक्कर चल रहा था और वह अपनी अनुचित इच्छाओं के अनुसार जी रहा था। वह केवल अपनी ही कामुक वासना को संतुष्ट करने की सोच रहा था। उसने कभी अपनी पत्नी की भावनाओं पर कोई विचार नहीं किया, परिवार की तो बात ही दूर है। इसके चलते उनका घर टूट गया और उनका अलगाव हो गया। उन्होंने जो प्यार बीस सालों से ज़्यादा आपस मेंबाँटा था, वह उन बुरी प्रवृत्तियों के सामने इतना नाजुक लग रहा था; कि वह मामूली सा झटका भी नहीं झेल सका। क्या यह सब शैतान द्वारा मनुष्य के भ्रष्टाचार का परिणाम नहीं था?
हाँगर ने समझ लिया कि शैतान ने उसे बहुत गहरा नुकसान पहुँचाया था जिसके कारण, उसने हमेशा, वैवाहिक सद्भाव का प्यार, एक साथ उम्र बिताना, और "जब तक मौत हमें अलग नहीं करती", इन जैसे भावों को खोज की। वह सोचती थी कि उस प्रकार का विवाह ही, उसकी ज़िन्दगी की एकमात्र खुशी थी। जब उसका पति भटक गया, उसके बाद उसने अपने नष्ट हुए प्यार को बचाने के लिए सब कुछ करने की कोशिश की, और जब उसकी इच्छा पूरी नहीं हुई तो वह दर्द के धुंध में जीने लगी, जहाँ से वो खुद को निकाल नहीं पा रही थी, यहाँ तक कि उसने मौत में राहत पाने की कोशिश भी की। क्या यह सब वैसे ही गलत विचार और दृष्टिकोण नहीं हैं, जिससे शैतान ने मानवजाति को, उसके साथ खेलते और नुकसान पहुंचाते हुए, तर कर दिया है? केवल परमेश्वर के वचनों को पढ़ने से ही हाँगर यह समझ पायी कि सभी मनुष्य स्वार्थी हैं, वे सभी चीजें अपने फायदे के लिए और अपने स्वयं के सिद्धांतों के अनुसार करते हैं। दो लोगों के बीच कोई सच्चा प्यार नहीं होता; रूमानी प्रेम का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शैतान लोगों को भ्रष्ट करने और बहकाने के लिए सभी तरह की बेतुकी अवधारणाओं का उपयोग करता है, ताकि वे बुराई में श्रद्धा रखें, हर चीज़ से ज़्यादा रूमानी प्यार के पीछे भागें और पूरी तरह से उसके भ्रम में रहें। वे अधिकाधिक भ्रष्ट और दुष्ट हो जाते हैं, और परमेश्वर से दूर होते ही जाते हैं। इसी समय हाँगर ने वास्तव में अनुभव किया कि सत्य के बिना, लोगों को अच्छे और बुरे के बीच, सौंदर्य और कुरूपता के बीच और सकारात्मक चीजों के बारे में कोई विवेक नहीं है। उनके साथ केवल शैतान खिलवाड़ करेगा और उन्हें नुकसान पहुँचाएगा, वे अंततः इसके द्वारा पूरी तरह से निगल लिये जायेंगे। परमेश्वर के उद्धार के कारण, हाँगर ने शैतान द्वारा मानवजाति के भ्रष्टाचार के सत्य को देखा और दुःख के जड़ को पाया। परमेश्वर के वचनों ने उसके हृदय को बहुत उज्ज्वल कर दिया; वह अब बहुत अधिक सहज महसूस करती थी।
हाँगर ने फिर परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा: "क्योंकि परमेश्वर का सार पवित्र है; इसका अर्थ है कि केवल परमेश्वर के माध्यम से ही तुम जीवन के आरपार उज्जवल, और सही मार्ग पर चल सकते हो; केवल परमेश्वर के माध्यम से ही तुम जीवन के अर्थ को जान सकते हो, केवल परमेश्वर के माध्यम से ही तुम वास्तविक जीवन जी सकते हो, सत्य को धारण कर सकते हो, सत्य को जान सकते हो, और केवल परमेश्वर के माध्यम से ही तुम सत्य से जीवन को प्राप्त कर सकते हो। केवल स्वयं परमेश्वर ही तुम्हें बुराई से दूर रहने में सहायता कर सकता है और तुम्हें शैतान की क्षति और नियन्त्रण से मुक्त कर सकता है। परमेश्वर के अलावा, कोई भी व्यक्ति और कोई भी चीज़ तुम्हें कष्ट के सागर से नहीं बचा सकती है ताकि तुम अब और कष्ट नहीं सहो: यह परमेश्वर के सार के द्वारा निर्धारित किया जाता है। केवल स्वयं परमेश्वर ही इतने निःस्वार्थ रूप से तुम्हें बचाता है, केवल परमेश्वर ही अंततः तुम्हारे भविष्य के लिए, तुम्हारी नियति के लिए और तुम्हारे जीवन के लिए ज़िम्मेदार है, और वही तुम्हारे लिए सभी चीज़ों को व्यवस्थित करता है। यह कुछ ऐसा है जिसे कोई सृजित या सृजित नहीं किया गया प्राणी प्राप्त नहीं कर सकता है। क्योंकि कोई भी सृजित या सृजित नहीं किया गया प्राणी परमेश्वर के इस प्रकार के सार को धारण नहीं कर सकता है, इसलिए किसी भी व्यक्ति या प्राणी में तुम्हें बचाने या तुम्हारी अगुवाई करने की क्षमता नहीं है। मनुष्य के लिए परमेश्वर के सार का यही महत्व है।"
हाँगर परमेश्वर के वचनों से समझ गयी कि केवल परमेश्वर ही मनुष्य को शैतान के भ्रष्टाचार से बचा सकते हैं। लोग, मानवजाति को भ्रष्ट करने की शैतान की रणनीति और तरीके पर विवेक, केवल परमेश्वर के वचनों के माध्यम से सत्य को समझने द्वारा ही हासिल कर सकते हैं। शैतान की चाल के बारे में अंतर्दृष्टि हासिल करने, उसके नुकसान से बचने और स्वतंत्र रूप से जीने का यही एकमात्र तरीका है। उसने ठंडी आह भरी, इस पर विलाप किया कि इतने सालों तक वह गलत विचारों के अधीन रही और इस पर भी कि शादी के माध्यम से खुशी पाने की कोशिश एक भ्रम से ज्यादा कुछ नहीं था। उसने करना इस तथ्य के बारे में सोचा कि उसका पति भी शैतान द्वारा भ्रष्ट किया गया व्यक्ति था, और उसने जो चाहा था वह नकारात्मक, बुरी चीजें थीं। इसलिए वह केवल उसे दुख और चोट ही पहुँचा सकता था; वह उसे किसी भी प्रकार की खुशी नहीं दे सकता था। केवल, लोगों के लिए परमेश्वर का प्यार ही निस्वार्थ है, और केवल परमेश्वर ही पूरे दिल से शैतान के शासन से लोगों को बचाना चाहते हैं। परमेश्वर ने सभी प्रकार के सत्य व्यक्त किए हैं और मानवजाति को शुद्ध और परिवर्तित करने के लिए सभी प्रकार के वातावरण की व्यवस्था करते हैं, यह सब लोगों को शैतान के नुकसान से बचाने के लिए उनकी अगुआई करने और उन्हें खुशहाल ज़िन्दगी देने के लिए हैं। लेकिन जहाँ तक भ्रष्ट मानवों की बात है, जैसे ही कुछ उनके स्वयं के व्यक्तिगत हित को स्पर्श भी करेगा, वे विश्वासघात कर बैठेंगे; केवल परमेश्वर हर समय, हर जगह लोगों के पास हो सकते हैं, और हर प्रतिकूलता से निकल पाने में उनकी मदद कर सकते हैं। केवल परमेश्वर पर वास्तव में भरोसा किया जा सकता है, किसी व्यक्ति की आत्मा के लिए परमेश्वर का घर ही एकमात्र वास्तविक आश्रय है। अतीत में, हाँगर को शैतान से उत्पन्न बुरी प्रवृतियों की कोई समझ नहीं थी, और वह बिना किसी ख़ुशी और आनंद के, अपने पति के प्रति नाराज़गी में जी रही थी। शैतान के बंधन और अहित में रहते हुए, वह हर दिन दुःख में बिता रही थी-उसका दर्द अकथनीय था। अब जबकि उसने अपनी पीड़ा की जड़ पा ली थी, वह अपने पति से नफरत नहीं करती थी। यह ऐसा था मानो उसके कन्धों से भारी बोझ हट गया हो, उसने अपनी आत्मा में ऐसी शांति, सहजता और आज़ादी का अनुभव किया जैसे उसने पहले कभी नहीं किया था। सत्य की समझ से उसने वाकई सभी प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीज़ों के बारे में विवेक पाया और शैतान के नुकसान और पीड़ा के उत्पीड़न से अंतत: मुक्त हो गयी।
अब जबकि उसके पास परमेश्वर के वचनों का प्रबोधन और मार्गदर्शन था, हाँगर अब पहले के समान कमज़ोर हौसले वाली नहीं थी। वह पूरी तरह अनचाही चीज़ों को छोड़ने में सक्षम हुई और उसने अपने पति द्वारा उनकी शादी को धोखा देने को भी स्वीकार लिया। उसने अंतत: अपने ऊपर झूलते, धुंध के उन दिनों को अलविदा कहा। उसे जानने वाले हर व्यक्ति ने कहा कि वह एक व्यक्ति के रूप में बदल गयी थी, वह दिमाग से और अधिक स्पष्ट और चिंतामुक्त हो गयी थी। परमेश्वर के वचनों के माध्यम से स्वयं में प्राप्त इन सभी परिवर्तनों के लिए, वह परमेश्वर के लिए कृतज्ञता से भरी थी।
कई साल बीत गए हैं। हाँगर परमेश्वर के वचनों को अक्सर पढ़ती है, कलीसिया का जीवन जीती है, अपने भाइयों और बहनों के साथ परमेश्वर के वचनों पर संगति करती है, और एक सृष्टि होने के कर्तव्य को पूरा करने लिए जी-जान लगाती है। उसके दिन बहुत संतुष्टिदायक हैं। उसने थोड़ा सत्य समझा है और स्पष्ट रूप से जाना है कि धरती पर किसी व्यक्ति का जीवन सिर्फ अपने जीवनसाथी या बच्चों की खातिर नहीं जिया जाता है, बल्कि यह एक प्राणी के उचित कर्तव्य को पूरा करने के लिए होता है, और केवल इस तरह से जीने से ही एक व्यक्ति परमेश्वर को खुशी दे सकता है। उसने आखिरकार ज़िन्दगी में सही रास्ता पा लिया है, जो कि परमेश्वर का अनुसरण करना है, परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को स्वीकारना है, परमेश्वर के कार्य से गुजरना है और सत्य को समझने और प्राप्त करने के लिए प्रयास करना है। यह परमेश्वर से भय खाना और बुराई से दूर रहना है, और ऐसा व्यक्ति बनना है जो परमेश्वर की आज्ञा मानता है और उनकी आराधना करता है। केवल यह सब कुछ ही सबसे सार्थक और सुखद प्रकार का जीवन है। हाँगर की इच्छा, परमेश्वर के मार्गदर्शन और अगुआई के तहत जीवन में इस तरह का मार्ग अपनाना है, सत्य और जीवन पाना है, खुद को शैतान के नुकसान से पूरी तरह से मुक्त करना है, और अर्थपूर्ण जीवन जीना है-सत्य की वास्तविकता को जीना और परमेश्वर के लिए महिमा लाना है!
स्रोत: यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए
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