आओ हम इस अंश के अन्तिम वाक्य में आगे बढ़ें: "फिर परमेश्वर ने कहा, 'पृथ्वी से हरी घास, तथा बीजवाले छोटे छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्हीं में एक एक की जाति के अनुसार हैं, पृथ्वी पर उगें,' और वैसा ही हो गया।" जब परमेश्वर बोल रहा था तो परमेश्वर के विचारों का अनुसरण करते हुए ये सभी चीज़ें अस्तित्व में आ गईं और एक क्षण में ही, अलग-अलग प्रकार की छोटी-छोटी नाज़ुक ज़िन्दगियाँ बेतरतीब ढंग से मिट्टी से बाहर आने के लिए सिर उठाने लगीं और इससे पहले कि वे अपने शरीर से थोड़ी-सी धूल भी झाड़ पातीं, वे उत्सुकता से एक-दूसरे का अभिनन्दन करते हुए यहाँ-वहाँ मँडराने, सिर हिला-हिलाकर संकेत देने और इस संसार पर मुस्कुराने लगीं थीं। उन्होंने सृष्टिकर्ता को उस जीवन के लिए धन्यवाद दिया जो उसने उन्हें दिया था और संसार को यह घोषित किया कि वे भी इस संसार की सभी चीज़ों का एक भाग हैं और उनमें से प्रत्येक प्राणी सृष्टिकर्ता के अधिकार को दर्शाने के लिए अपना जीवन समर्पित करेगा। जैसे ही परमेश्वर के वचन कहे गए, भूमि हरी-भरी हो गई, सब प्रकार के सागपात जिनका मनुष्यों के द्वारा आनन्द लिया जा सकता था अँकुरित हो गए, और भूमि को भेदकर बाहर निकले, और पर्वत और तराइयाँ वृक्षों एवं जंगलों से पूरी तरह से भर गए...। यह बंजर संसार, जिसमें जीवन का कोई निशान नहीं था, शीघ्रता से घास, सागपात, वृक्ष एवं उमड़ती हुई हरियाली से भर गया...। घास की महक और मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुशबू हवा में फैल गई और सुसज्जित पौधों की कतारें हवा के चक्र के साथ एक साथ साँस लेने लगीं और बढ़ने की प्रक्रिया शुरू हो गई। उसी समय, परमेश्वर के वचन के कारण और परमेश्वर के विचारों का अनुसरण करके, सभी पौधों ने अपनी सनातन जीवन-यात्रा शुरू कर दी जिसमें वे बढ़ने, खिलने, फल उत्पन्न करने, और बहुगुणित होने लगे। वे अपने-अपने जीवन पथ से कड़ाई से चिपके रहे और उन्होंने सभी चीज़ों में अपनी-अपनी भूमिकाएँ अदा करनी शुरू कर दी...। उन्होंने सृष्टिकर्ता के वचनों के कारण उत्पन्न होकर जीवन बिताया। वे सृष्टिकर्ता की कभी न खत्म होने वाली भोजन सामग्री और पोषण को प्राप्त करेंगे और परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य को दर्शाने के लिए भूमि के हर कोने में दृढ़संकल्प के साथ ज़िन्दा रहेंगे और वे हमेशा उस जीवन-शक्ति को दर्शाते रहेंगे जो सृष्टिकर्ता के द्वारा उन्हें दी गई है ...
सृष्टिकर्ता का जीवन असाधारण है, उसके विचार असाधारण हैं, उसका अधिकार असाधारण है और इस प्रकार, जब उसके वचन उच्चारित हुए, तो उसका अन्तिम परिणाम था "और वैसा ही हो गया।" स्पष्ट रूप से, जब परमेश्वर कार्य करता है तो उसे अपने हाथों से काम करने की आवश्यकता नहीं होती; वह बस आज्ञा देने के लिए अपने विचारों का और आदेश देने के लिए अपने वचनों का उपयोग करता है और इस तरह काम पूरे हो जाते हैं। इस दिन, परमेश्वर ने जल को एक साथ एक जगह पर इकट्ठा किया और सूखी भूमि दिखाई दी, उसके बाद परमेश्वर ने भूमि से घास को उगाया और छोटे-छोटे पौधे जो बीज उत्पन्न करते थे, और पेड़ जो फल उत्पन्न करते थे उग आए, और परमेश्वर ने प्रजाति के अनुसार उनका वर्गीकरण किया और हर एक में उसका बीज दिया। यह सब कुछ परमेश्वर के विचारों और परमेश्वर के वचनों की आज्ञाओं के अनुसार साकार हुआ और इस नए संसार में हर चीज़ एक के बाद एक प्रगट होती गई।