भ्रष्ट मानवता को आवश्यकता है परमेश्वर द्वारा उद्धार की
सच्चे मसीह और झूठे मसीहों को पहचाने के 3 तरीके
प्रभु यीशु ने कहा, "आधी रात को धूम मची: देखो दूल्हा आ रहा है!उससे भेंट करने के लिए चलो" (मत्ती 25:6)। "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। प्रभु के वचनों से यह देखा जा सकता है कि जब हम किसी को प्रभु के आने के बारे में समाचार फैलाते हुए सुनते हैं, तो हमें बुद्धिमान कुंवारियाँ बनना चाहिए और सक्रिय रूप से खोज और जाँच करनी चाहिए। मात्र इसी तरीके से हम प्रभु के लौटने का स्वागत कर सकते हैं। परन्तु पासबानइन पदों के आधार पर कि "उस समय यदि कोई तुम से कहे, 'देखो, मसीह यहाँ है!' या 'वहाँ है!' तो विश्वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें" (मत्ती 24:23-24), हमेशा यही बताते हैं कि हमें उन लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए, जो यह प्रचार करते हैं कि प्रभु यीशु लौट चुके हैं, क्योंकि वे झूठे मसीहों के मार्ग का प्रचार कर रहे हैं और लोगों को धोखा दे रहे हैं। इसलिए अनेक भाई-बहन अत्यधिक भ्रमित हैं: "जब हम किसी को प्रभु यीशु के लौटने की गवाही देते हुए सुनते हैं, तो क्या हमें सक्रिय रूप से इसकी खोज और जाँच करनी चाहिए या इससे बचना और इसे इन्कार कर देना चाहिए? प्रभु की इच्छा के अनुरूप चलने के लिए हमें क्या करना चाहिए?" सच्चे और झूठे मसीहों के बीच फ़र्क कैसे करें, मैं इस प्रश्न के सत्य के बारे में प्रत्येक व्यक्ति के साथ संगति करना चाहूँगा। यदि हम इस पहलू के सत्य को ग्रहण कर लेते हैं, तो हमें झूठे मसीहों और झूठे नबियों से धोखा खाने के विषय में चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है और न ही हम धैर्यवान होकर बचाव करने के कारण प्रभु के लौटने का स्वागत करने के अवसर से चूकेंगे।

आइए पहले हम वचनों के एक अंश पर एक नज़र डालें, "यह पता लगाने के लिए कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, मनुष्य को इसका निर्धारण उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव से और उसके द्वारा बोले वचनों से अवश्य करना चाहिए। कहने का अभिप्राय है कि वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है या नहीं, और यह सही मार्ग है या नहीं, इसे परमेश्वर के सार से तय करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने[क] में कि यह देहधारी परमेश्वर का शरीर है या नहीं, बाहरी रूप-रंग के बजाय, उसके सार (उसका कार्य, उसके वचन, उसका स्वभाव और बहुत सी अन्य बातें) पर ध्यान देना ही कुंजी है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी रूप-रंग को ही देखता है, उसके तत्व की अनदेखी करता है, तो यह मनुष्य की अज्ञानता और उसके अनाड़ीपन को दर्शाता है" (प्रस्तावना)। ये वचन हमें स्पष्ट रूप से बताते हैं कि झूठे मसीहों को पहचानने में उनके सार को देखना शामिल होता है, न कि उनके बाहरी रूप को। कहने का अर्थ है कि उनको पहचानने के लिए हमें उनके कार्य, शब्दों और स्वभाव को देखना चाहिए। अब, आइए प्रभु यीशु के कुछ वचनों को पढ़ें और सच्चे मसीह और झूठे मसीहों के बीच के सारभूत अन्तरों के साथ-साथ उन्हें पहचाने के तरीके के विषय में बात करें।
सबसे पहले, हमें उन कामों को देखना चाहिए जो वे करते हैं।
प्रभु यीशु ने कहा, "क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें" (मत्ती 24:24)। प्रभु के वचन हमें दिखाते हैं कि झूठे मसीह और झूठे नबी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को धोखा देने के लिए मुख्यतः संकेत देने और चमत्कार करने पर यकीन करते हैं। झूठे मसीहों द्वारा लोगों को धोखा दिये जाने का यह प्राथमिक प्रकटीकरण होता है। वचनों के इस अंश को पढ़ने के पश्चात हम इस विषय के बारे में और स्पष्ट हो सकते हैं: "यदि, वर्तमान समय में, कोई व्यक्ति उभर कर आता है जो चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करने, पिशाचों को निकालने, चंगाई करने में और कई चमत्कारों को करने में समर्थ है, और यदि यह व्यक्ति दावा करता है कि वो यीशु की वापसी है, तो यह दुष्टात्माओं की जालसाजी और उसका यीशु की नकल करना होगा। इस बात को स्मरण रखें! परमेश्वर एक ही कार्य को दोहराता नहीं है। यीशु के कार्य का चरण पहले ही पूर्ण हो चुका है, और परमेश्वर फिर से उस चरण के कार्य को पुनः नहीं दोहराएगा। ...मनुष्य की अवधारणाओं में, परमेश्वर को अवश्य हमेशा चिह्न और चमत्कार दिखाने चाहिए, हमेशा चंगा करना और पिशाचों को निकालना चाहिए, और हमेशा यीशु के ही समान अवश्य होना चाहिए, फिर भी इस समय परमेश्वर इन सब के समान बिल्कुल भी नहीं है। यदि अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर अभी भी चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करता है और अभी भी दुष्टात्माओं को निकालता और बीमारों को चंगा करता है-यदि वह यीशु के ही समान करता है-तो परमेश्वर एक ही कार्य को दोहरा रहा होगा, और यीशु के कार्य का कोई महत्व या मूल्य नहीं होगा। इस प्रकार, प्रत्येक युग में परमेश्वर कार्य के एक ही चरण को करता है। एक बार जब उसके कार्य का प्रत्येक चरण पूरा हो जाता है, तो शीघ्र ही इसकी दुष्टात्माओं के द्वारा नकल की जाती है, और शैतान द्वारा परमेश्वर का करीब से पीछा करने के बाद, परमेश्वर एक दूसरा तरीका बदल देता है। एक बार परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूर्ण कर लेता है, तो इसकी दुष्टात्माओं द्वारा नकल कर ली जाती है। तुम लोगों को इस बारे में अवश्य स्पष्ट हो जाना चाहिए।"
यह अंश हमें स्पष्ट रूप से बताता है कि परमेश्वर सर्वदा नए हैं और कभी पुराने नहीं होते हैं, और वह एक ही कार्य को दोहराते नहीं हैं। ठीक उसी तरह, जब प्रभु यीशु कार्य करने के लिए आए, उन्होंने व्यवस्था के युग में नियम बनाने के कार्य को नहीं दोहराया, बल्कि अनुग्रह के युग को प्रारम्भ किया और मानवजाति को छुटकारा देने का कार्य किया। उन्होंने मनुष्य को पश्चाताप का मार्ग दिया, रोगियों को चंगा किया, दुष्टात्माओं को मिटाया और मनुष्य के लिए अंतत: क्रूस पर चढ़ा दिये गए। उन्होंने मानवजाति को पाप से छुटकारा दिया। अत: अंत के दिनों में जब प्रभु यीशु वापिस आएँगे, तो वे भी एक नए युग का प्रारम्भ करेंगे और नया कार्य करेंगे और उस कार्य को नहीं दोहराएँगे, जो वह पूरा कर चुके हैं। और झूठे मसीह? वे सभी दुष्टात्माएं हैं, जो मसीह की नकल करते हैं। वे एक नए युग को प्रारंभ करने और पुराने युग को समाप्त करने के कार्य को करने में अयोग्य हैं। प्रभु यीशु की नकल करने और उन लोगों को धोखा देने के लिए, जो नासमझ और पहचानने में अयोग्य होते हैं, वे बस कुछ साधारण संकेत देने और चमत्कार करने का काम ही कर सकते हैं। परन्तु वे उस कार्य की नकल करने में असमर्थ हैं जो प्रभु यीशु ने मृतकों को जीवित करने और पाँच रोटी और दो मछली से पाँच हज़ार लोगों को खाना खिलाने या वायु और समुद्र को डाँटने के रूप में किया था। वह पूरी तरह से उनकी क्षमता से परे है, क्योंकि वे परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य नहीं रखते हैं। इसलिए, वह जो नए युग का प्रारम्भ कर सकता है और पुराने को समाप्त कर सकता है, वही सच्चा मसीह है, जबकि वे, जो ऐसा करने में अयोग्य हैं परन्तु बस परमेश्वर के पदचिह्नों के पीछे चलते हैं और उस कार्य की नकल करते हैं, जो परमेश्वर पहले की कर चुके हैं, बिना किसी सन्देह के झूठे मसीह हैं।
दूसरा, हमें उन शब्दों पर ध्यान देना चाहिए, जो वे बोलते हैं।
एक बार प्रभु यीशु ने कहा, "मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ" (यूहन्ना 14:6)। यह देखा जा सकता है कि मसीह के द्वारा कहे गए सभी वचन सत्य हैं, जो मनुष्य को जीवन दे सकते हैं, मनुष्य को एक मार्ग दिखा सकते हैं और मनुष्य का जीवन बन सकते हैं। ठीक उसी प्रकार, जब प्रभु यीशु अपना कार्य कर रहे थे, उन्होंने मानवजाति की आवश्यकताओं के आधार पर पश्चाताप के मार्ग को अभिव्यक्त किया, लोगों को अन्य लोगों से वैसे ही प्रेम करने की शिक्षा दी, जैसे वे अपने आप से प्रेम करते हैं, उन्हें दूसरों को सात बार के सत्तर गुने तक क्षमा करने और अपने पापों को स्वीकार करने और पश्चाताप करने की शिक्षा दी, व्यवस्था के अधीन जीवन जी रहे लोगों के लिए अभ्यास के एक नए मार्ग की ओर संकेत किया।
प्रभु यीशु ने हमें यह भी बताया, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:7)। "मत रो; देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है" (प्रकाशितवाक्य 5:5)। इन पदों से यह सुस्पष्ट है कि अंत के दिनों में जब प्रभु आएँगे, तो वे अनेक सत्यों को अभिव्यक्त करेंगे, जो हम नहीं समझते हैं और वे उस पुस्तक और सात मोहरों को खोलेंगे। प्रभु यीशु के लौटने के विषय में इन भविष्यवाणियों के अनुसार, हम आश्वस्त हो सकते हैं कि जब सच्चे मसीह आएँगे, तो वे सत्य को अभिव्यक्त करने के योग्य होंगे। यह सुनिश्चित है! आइए वचनों के और अंश को पढ़ें: "परमेश्वर देहधारी हुआ और मसीह कहलाया, और इसलिए वह मसीह, जो लोगों को सत्य दे सकता है, परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि वह परमेश्वर के तत्व को स्वयं में धारण किए रहता है, और अपने कार्य में परमेश्वर के स्वभाव और बुद्धि को धारण करता है, और ये चीजें मनुष्य के लिये अप्राप्य हैं। जो अपने आप को मसीह कहते हैं, फिर भी परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते, वे सभी धोखेबाज़ हैं। असल मसीह पृथ्वी पर केवल परमेश्वर की अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि वह देह भी है जिसे धारण करके परमेश्वर लोगों के बीच रहकर अपना कार्य पूर्ण करता है। यह वह देह नहीं है जो किसी भी मनुष्य के द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सके, बल्कि वह देह है, जो परमेश्वर के कार्य को पृथ्वी पर अच्छी तरह से करता है और परमेश्वर के स्वभाव को अभिव्यक्त करता है, और अच्छी प्रकार से परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है, और मनुष्य को जीवन प्रदान करता है। कभी न कभी, उन धोखेबाज़ मसीह का पतन होगा, हालांकि वे मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें किंचितमात्र भी मसीह का सार-तत्व नहीं होता। इसलिए मैं कहता हूं कि मसीह की प्रमाणिकता मनुष्य के द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती है, परन्तु स्वयं परमेश्वर के द्वारा उत्तर दिया और निर्णय लिया जा सकता है।"
इन वचनों से हम देख सकते हैं कि मसीह स्वयं देहधारी परमेश्वर हैं, परमेश्वर का आत्मा देह में साकार हुआ है और वह मनुष्य को पोषण देने और उसकी चरवाही करने के लिए किसी भी समय और किसी भी स्थान पर सत्य को अभिव्यक्त कर सकता है। इसी दौरान, अधिकतर झूठे मसीह दुष्टात्माओं के प्रभाव में होते हैं। इसलिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किस प्रकार बाइबल की गलत व्याख्या करते हैं, किस प्रकार गहन ज्ञान और सिद्धांत की बातें करते हैं, दरअसल वे लोगों को धोखा देने और उन्हें हानि पहुँचाने के अलावा और कुछ नहीं करते हैं। वे ऐसा कुछ भी नहीं करते हैं, जो हमें उन्नत बनाता हो। वे जो कुछ भी करते हैं, उससे हमारे हृदयों में और अन्धकार आता है; वे हमारे चलने के लिए कोई मार्ग ही नहीं छोड़ते और अंततः वे हमें बर्बाद कर देंगे। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन हैं। इसलिए, वह जो सत्य को अभिव्यक्त कर सकता है, हमें मार्ग दिखा सकता है और हमें जीवन दे सकता है, वही असली मसीह है, जबकि वे, जो अपने आप को मसीह बताते हैं, परन्तु सत्य को अभिव्यक्त करने में असमर्थ हैं, निस्संदेह झूठे मसीह हैं। यह झूठे मसीह और झूठे नबियों को पहचानने का आधारभूत सिद्धांत है।
तीसरा, हमें उस स्वभाव को देखना चाहिए जो वे प्रदर्शित करते हैं।
एक बार प्रभु यीशु ने हमें सचेत किया था, "बहुतेरे मेरे नाम से आकर कहेंगे, 'मैं वही हूँ!' और बहुतों को भरमाएँगे" (मत्ती 24:5)। इस पद में, प्रभु यीशु ने हमें झूठे मसीहों की अन्य विशेषता को बताया-वे सभी घमण्डी और अहंकारी स्वभाव रखते हैं, वे लोगों के सामने अपना दिखावा करना और अपने आप के मसीह होने का प्रचार करना पसन्द करते हैं, ताकि लोगों से परमेश्वर के समान अपनी आराधना करवा सकें।
वचनों के इस अंश को पढ़ने के पश्चात हम इसे अच्छे से समझ पाएँगे: "जितने अधिक वे झूठे होते हैं, उतना ही अधिक इस प्रकार के झूठे मसीह स्वयं का दिखावा करते हैं, तथा लोगों को धोखा देने के लिये वे और अधिक संकेतों और चमत्कारों को करने में समर्थ होते हैं। झूठे मसीहों के पास परमेश्वर के गुण नहीं होते हैं; मसीह पर झूठे मसीहों से संबंधित किसी भी तत्व का दाग नहीं लगता है। परमेश्वर केवल देह का कार्य पूर्ण करने के लिये देहधारी होता है, मात्र सब मनुष्यों को उसे देखने देने की अनुमति देने के लिए नहीं। बल्कि, वह अपने कार्य से अपनी पहचान की पुष्टि होने देता है, तथा जो वह प्रकट करता है उसे अपने सार को प्रमाणित करने की अनुमति देता है। उसका सार निराधार नहीं है; उसकी पहचान उसके हाथ द्वारा जब्त नहीं की गई है; यह उसके कार्य तथा उसके सार द्वारा निर्धारित की जाती है।"
इस अंश से हम जान सकते हैं कि वे जितने अधिक झूठे हैं, ऐसे और झूठे मसीह अपने आप को दूसरे लोगों के सामने उन्हें धोखा देने के लिए और दिखावा करेंगे, जबकि मसीह अपने कार्य से अपनी पहचान करवाएँगे। ठीक उसी तरह, जब प्रभु यीशु ने कार्य किया, उन्होंने रोगियों को चंगा किया, दुष्टात्माओं को निकाला, पाँच रोटी और दो मछलियों से पाँच हज़ार लोगों को भोजन करवाया और मृतकों को जीवित किया। भले ही मनुष्य ने उन्हें नहीं जाना, उनके अधिकार और सामर्थ्य ने स्वयं देहधारी परमेश्वर के रूप में उनकी पहचान को प्रमाणित कर दिया, क्योंकि परमेश्वर के अलावा किसी के पास ऐसा अधिकार नहीं है। इसलिए जब मसीह कार्य करने के लिए आते हैं, वे कभी ढिंढोरा पीटकर ऐसा नहीं कहते कि वे परमेश्वर और मसीह हैं या अपना दिखावा नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे तो बस अपना कार्य करते हैं और देह में छिपे रहकर अपने वचनों को साधारण तरीके से मनुष्यों के बीच बोलते हैं, ताकि मनुष्य को उन चीज़ों की आपूर्ति की जा सके जिनकी उनके जीवनों को आवश्यकता है, यह परमेश्वर के जीवन के सर्वोच्च आदर के योग्य और पवित्र सार को दर्शाता है। परन्तु झूठे मसीह, हमेशा ढिंढोरा पीट कर कहते हैं कि वे मसीह हैं और कुछ तो बेशर्मी के साथ यहाँ तक कहते हैं कि यदि आप उनकी बातें नहीं सुनते हैं तो आप राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते हैं, वे लोगों को अपने पास लाने या लोगों को ठगने के लिए कुछ संकेत देने या चमत्कार दिखाने की भरसक कोशिश करते हैं। इसके अनेकों अनेक उदाहरण हैं। अत: सच्चे और झूठे मसीहों को पहचानने का अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत उस स्वभाव को देखना है, जो वे प्रदर्शित करते हैं।
प्रिय भाइयो और बहनो, ऊपर बताए गए तीन सिद्धांत सच्चे और झूठे मसीहों को पहचानने के सिद्धांत हैं। यदि हम मात्र इन तीन सिद्धांतों को समझ लेते हैं, तो हम झूठे मसीहों से धोखा खाने से बच सकते हैं और प्रभु के लौटने का स्वागत करने वाली बुद्धिमान कुंवारियाँ बन सकते हैं।
स्रोत: यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए
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