भ्रष्ट मानवता को आवश्यकता है परमेश्वर द्वारा उद्धार की
विवाह के बाइबल के पद: अपनी शादी को कैसे समझें
शादी हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। हर कोई एक खुशहाल शादी के लिए तरसता है, फिर भी तथ्य अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रहे हैं। समाज के प्रभाव के कारण, हमारे पास अपनी शादी के लिए कोई विकल्प नहीं है और हम नहीं जानते कि अपना जीवनसाथी कैसे चुनें। नतीजतन, हम निराश और असहाय महसूस करते हैं, अंतहीन नुकसान और पीड़ा में रहते हैं। तो हमें अपनी शादी को कैसे समझना चाहिए? विवाह के बाइबल के पद और आयतें आपकी मदद करेंगी।

उत्पत्ति 2:18
फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, "आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उस से मेल खाए।"
उत्पत्ति 2:24
इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा, और वे एक ही तन बने रहेंगे।
नीतिवचन 18:22
जिसने स्त्री ब्याह ली, उसने उत्तम पदार्थ पाया, और यहोवा का अनुग्रह उस पर हुआ है।
श्रेष्ठगीत 8:6-7
मुझे नगीने के समान अपने हृदय पर लगा रख, और ताबीज़ के समान अपनी बाँह पर रख; क्योंकि प्रेम मृत्यु के तुल्य सामर्थी है, और ईर्ष्या क़ब्र के समान निर्दयी है। उसकी ज्वाला अग्नि की दमक है वरन् परमेश्वर ही की ज्वाला है। पानी की बाढ़ से भी प्रेम नहीं बुझ सकता, और न महानदों से डूब सकता है। यदि कोई अपने घर की सारी सम्पत्ति प्रेम के बदले दे दे तौभी वह अत्यन्त तुच्छ ठहरेगी।
सभोपदेशक 4:9-12
एक से दो अच्छे हैं, क्योंकि उनके परिश्रम का अच्छा फल मिलता है।क्योंकि यदि उनमें से एक गिरे, तो दूसरा उसको उठाएगा; परन्तु हाय उस पर जो अकेला होकर गिरे और उसका कोई उठानेवाला न हो। फिर यदि दो जन एक संग सोएँ तो वे गर्म रहेंगे, परन्तु कोई अकेला कैसे गर्म हो सकता है? यदि कोई अकेले पर प्रबल हो तो हो, परन्तु दो उसका सामना कर सकेंगे। जो डोरी तीन तागे से बटी हो वह जल्दी नहीं टूटती।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
विवाह: चौथा मोड़
जब कोई उम्र में बढ़ता है और परिपक्व होता है, तो वह अपने माता-पिता से और उस परिवेश से और भी अधिक दूर हो जाता है जिसमें वह जन्मा और पला-बढ़ा था, और इसके बजाय वह अपने जीवन के लिए एक दिशा को खोजने और उस तरीके से अपने स्वयं के जीवन के लक्ष्यों को पाने का प्रयास शुरू कर देता है जो उसके माता-पिता से भिन्न होते हैं। इस दौरान उसे अपने माता-पिता की अब और आवश्यकता नहीं होती है, किन्तु उसके बजाए एक साथी की आवश्यकता होती है जिसके साथ वह अपने जीवन को बिता सकता हैः एक जीवनसाथी, एक ऐसा व्यक्ति जिसके साथ उसका भाग्य घनिष्ठता से गुँथा हुआ होता है। इस तरह, पहली बड़ी घटना जिसका वह स्वावलंबन के पश्चात् सामना करता है वह विवाह है, चौथा मोड़ जिससे उसे अवश्य गुज़रना चाहिए।
1. विवाह के बारे में किसी के पास कोई विकल्प नहीं है
किसी भी व्यक्ति के जीवन में विवाह एक मुख्य घटना है; यह वह समय है जब कोई सचमुच विभिन्न प्रकार के उत्तरदायित्वों को ग्रहण करना शुरू करता है, विभिन्न प्रकार के ध्येयों को धीरे-धीरे पूरा करना आरम्भ करता है। लोग विवाह के बारे में स्वयं इसका अनुभव करने से पहले बहुत से भ्रमों को आश्रय देते हैं, और ये सभी भ्रम बहुत ही खूबसूरत होते हैं। महिलाएँ कल्पना करती हैं कि उनके होने वाले पति सुन्दर राजकुमार होंगे, और पुरुष कल्पना करते हैं कि वे शुद्ध, गोरी महिला से विवाह करेंगे। इन कल्पनाओं से पता चलता है कि विवाह के लिए प्रत्येक व्यक्ति की कुछ निश्चित अपेक्षाएँ होती हैं, उनकी स्वयं की माँगें और मानक होते हैं। यद्यपि इस दुष्ट युग में लोगों के ऊपर विवाह के बारे में विकृत संदेशों की लगातार बमबारी की जाती है, जो और भी अधिक अतिरिक्त अपेक्षाओं का निर्माण करते हैं और लोगों को सब प्रकार के सामान एवं अजीब प्रवृत्तियाँ प्रदान करते हैं, कोई व्यक्ति जिसने विवाह का अनुभव किया है वह जानता है कि कोई इसे किसी भी तरह से क्यो न समझे, इसके प्रति उसकी प्रवृत्ति कुछ भी क्यों न हो, विवाह व्यक्तिगत पसंद का मामला नहीं है।
व्यक्ति का अपने जीवन में कई लोगों से सामना होता है, किन्तु कोई नहीं जानता है कि उसका जीवनसाथी कौन बनेगा। यद्यपि विवाह के विषय पर प्रत्येक की अपनी स्वयं की सोच और अपने व्यक्तिगत रवैये होते हैं, फिर भी वह पूर्वानुमान नहीं लगा सकता हैं कि अंततः कौन उसका सच्चा जीवनसाथी बनेगा, और उसकी स्वयं की अवधारणाएँ कम महत्व रखती हैं। तुम जिस व्यक्ति को पसंद करते हो उससे मिलने के बाद, उसे पाने का प्रयास कर सकते हो; किन्तु वह तुममें रुचि रखता या रखती है या नहीं, वह तुम्हारा या तुम्हारी जीवन साथी बनने के योग्य है या नहीं, यह तय करना तुम्हारा काम नहीं है। तुम्हारी अनुरक्तियों का व्यक्ति ज़रूरी नहीं कि वह व्यक्ति हो जिसके साथ तुम अपना जीवन साझा करने में समर्थ होगे; और इसी बीच कोई ऐसा जिसकी तुमने कभी अपेक्षा नहीं की थी वह चुपके से तुम्हारे जीवन में प्रवेश कर जाता है और तुम्हारा साथी बन जाता है, तुम्हारे भाग्य का सबसे महत्वपूर्ण अवयव, तुम्हारा जीवन-साथी बन जाता है, जिसके साथ तुम्हारा भाग्य अभिन्न रूप से बँध जाता है। और इसलिए, यद्यपि संसार में लाखों विवाह होते हैं, फिर भी हर एक भिन्न है: कितने विवाह असंतोषजनक होते हैं, कितने सुखद होते हैं; कितने पूर्व तथा पश्चिम, कितने उत्तर और दक्षिण तक फैल जाते हैं; कितने परिपूर्ण जोड़े होते हैं, कितने समकक्ष श्रेणी के होते हैं; कितने सुखद और सामंजस्यपूर्ण होते हैं, कितने दुःखदाई और कष्टपूर्ण होते हैं; कितने दूसरों से ईर्ष्यापूर्ण होते हैं, कितनों को ग़लत समझा जाता है और उन पर नाक-भौं चढ़ाई जाती है; कितने आनन्द से भरे होते हैं, कितने आँसूओं से भरे हैं और मायूसी पैदा करते हैं...। इन अनगिनत विवाहों में, मनुष्य विवाह के प्रति वफादारी और आजीवन समर्पण प्रकट करते हैं, या प्रेम, आसक्ति, एवं अवियोज्यता को, या परित्याग और न समझ पाने को, या विवाह के प्रति विश्वासघात को, और यहाँ तक कि घृणा को भी प्रकट करते हैं। चाहे विवाह स्वयं में खुशी लाता हो या पीड़ा, विवाह में हर एक व्यक्ति का ध्येय सृजनकर्ता के द्वारा पूर्वनियत होता है और यह बदलेगा नहीं; हर एक को इसे पूरा करना ही होगा। और प्रत्येक विवाह के पीछे निहित व्यक्तिगत भाग्य अपविर्तनीय होता है; इसे बहुत पहले ही सृजनकर्ता के द्वारा अग्रिम में निर्धारित किया गया था।
2. विवाह दो भागीदारों के भाग्य से जन्म लेता है
विवाह किसी व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह किसी व्यक्ति के भाग्य का परिणाम है, उसके भाग्य में एक महत्वपूर्ण कड़ी है; यह किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत इच्छा या प्राथमिकताओं पर स्थापित नहीं होता है, और किसी भी बाहरी कारक के द्वारा प्रभावित नहीं होता है, बल्कि यह पूर्णतः दो पक्षों के भाग्य के द्वारा, दम्पत्ति के भाग्य के बारे में सृजनकर्ता की व्यवस्थाओं और उसके पूर्वनिर्धारणों के द्वारा निर्धारित होता है। सतही तौर पर, विवाह का उद्देश्य मानव जाति को जारी रखना है, परन्तु असलियत में विवाह और कुछ नहीं बल्कि एक रस्म है जिसमें कोई व्यक्ति अपने ध्येय को पूरा करने की प्रक्रिया से गुज़रता है। लोग जिन भूमिकाओं को विवाह में निभाते हैं वे मात्र अगली पीढ़ी का पालन पोषण करना नहीं हैं; वे ऐसी विभिन्न भूमिकाएँ हैं जिन्हें वे ग्रहण करते हैं और ऐसे ध्येय हैं जिन्हें विवाह को बनाए रखने के दौरान उन्हें पूरा करना होगा। चूँकि व्यक्ति का जन्म लोगों, घटनाओं और आसपास की चीज़ों के परिवर्तन को प्रभावित करता है, इसलिए उसका विवाह भी अनिवार्य रूप से उन्हें प्रभावित करेगा, और इसके अतिरिक्त, अनेक भिन्न-भिन्न तरीकों से उन्हें रूपान्तरित करेगा।
जब कोई स्वावलंबी हो जाता है, तो वह अपनी स्वयं की जीवन यात्रा आरम्भ करता है, जो उसे कदम दर कदम उसके विवाह से सम्बन्धित लोगों, घटनाओं, और चीज़ों की और ले जाती है; और उसके साथ-साथ, वह दूसरा व्यक्ति जो उस विवाह को पूरा करेगा वह, कदम-दर-कदम, उन्हीं लोगों, घटनाओं एवं चीज़ों की ओर आ रहा होता है। सृजनकर्ता की संप्रभुता के अधीन, दो असम्बद्ध लोग जो एक सम्बद्ध भाग्य को साझा करते हैं धीरे-धीरे विवाह में प्रवेश करते हैं और, चमत्कारी ढ़ंग से, एक परिवार, "एक ही रस्सी से लटकी हुई दो टिड्डियाँ" बन जाते हैं। इसलिए जब कोई विवाह में प्रवेश करता है, तो उसकी जीवन यात्रा उसके जीवनसाथी को प्रभावित और स्पर्श करेगी, और उसी तरह उसके साथी की जीवन यात्रा भी जीवन में उसके भाग्य को प्रभावित और स्पर्श करेगी। दूसरे शब्दों में, मनुष्य के भाग्य आपस में एक दूसरे से जुड़े होते हैं, और कोई भी दूसरों से पूरी तरह से स्वतन्त्र होकर जीवन में अपने ध्येय को पूरा नहीं कर सकता है या अपनी भूमिका को नहीं निभा सकता है। व्यक्ति का जन्म सम्बन्धों की एक बड़ी श्रृंखला से सम्बन्धित होता है; बड़े होने में भी सम्बन्धों की एक जटिल श्रृंखला शामिल होती है; और उसी प्रकार, मानवीय सम्बन्धों के एक विशाल और जटिल जाल में विवाह अनिवार्य रूप से अस्तित्व में आता है और कायम रहता है, जिसमें प्रत्येक वह सदस्य शामिल होता है और उस हर एक की नियति प्रभावित होती है जो इसका एक भाग है। विवाह दोनों सदस्यों के परिवारों का, उन परिस्थितियों का जिनमें वे बड़े हुए थे, उनके रंग-रूप, उनकी आयु, उनके गुणों, उनकी प्रतिभाओं, या अन्य कारकों का परिणाम नहीं है; बल्कि, यह साझा ध्येय और सम्बद्ध भाग्य से उत्पन्न होता है। यह विवाह का मूल है, और सृजनकर्ता के द्वारा आयोजित और व्यवस्थित मनुष्य के भाग्य का एक उत्पाद है।
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